The Gandhi:- क्या गांधी ने साउथ अफ्रीका में अंग्रेजो को सैनिक सेवा दी थी?

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सार्जेंट मेजर गांधी!!! 

क्या गांधी ने साउथ अफ्रीका में अंग्रेजो को सैनिक सेवा दी थी? 

- नहीं। विवरण दे रहा हूँ। 
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दक्षिण अफ्रीका में गांधी को 2 बार, उत्कृष्ट सैनिक सेवा का मेडल मिला था। यह बोअर वार का समय था। 

बोअर वे लोग थे दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजो से पहले आकर बसे थे। वे भी यूरोपियन थे, गोरे थे। उन डच व्यापारियों की संतान थे, जो केप ऑफ गुड होप में आकर बसे थे। 

जब ब्रिटिश ने यहाँ कब्जा करके केप ऑफ गुड होप, और जलमार्ग पर ब्रिटिश प्रभुत्व स्थापित किया, तो बोअर लोग उत्तर की तरफ जा बसे। 
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1870 के बाद, उत्तर के इन इलाकों में, सोने चांदी की खदाने खोजी गयी। ब्रिटिश को अब वह चाहिए था। 

तो तमाम बहाने खोजे गए। बोअर इलाको में मानवाधिकार हनन, नेटाल प्रान्त में सीमा विवाद वगैरह। संकट और दुश्मनी का माहौल बनाने के बाद, ब्रिटिश ने बोअर लोगो पर हमला किया, 

या बोअर्स ने ब्रिटिश पर.. कौन जाने? पर युद्ध ने 1899 में जोर पकड़ा, तब गांधी वहां मौजूद थे। 
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नेटाल इंडियन कॉन्ग्रेस बना चुके थे। आंदोलन वगैरह कर ही रहे थे, कि नेटाल में युद्ध शुरू हो गया। 

उन्होंने अफसरों से सम्पर्क किया, और एम्बुलेंस सर्विस देने की पेशकश की। सहमति मिली तो एक नेटाल एम्बुलेंस कोर्प्स बनाई।

यह एक स्वयमसेवी सन्गठन था। जैसे, रेडक्रॉस है। एम्बुलेंस के नाम पर छकड़ा गाड़ियां थी, जिसे घोड़े या मवेशी खींचते।। बांस में लटकी चारपाई पर पालकी की तरह घायल ढोये जाते। 
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युद्ध के इलाके में सेना, आपको फैंसी ड्रेस में घूमते देखे तो, तो दुश्मन समझकर गोली मार देगी। तो सेना से सम्पर्क कर, पहले सभी वालंटियर्स को पहचान पत्र दिलाये गए।

एक वर्दी तय हुई। बांह पर रेडक्रॉस का पट्टा पहनते। सबको बेसिक फर्स्ट एड ट्रेनिंग दी गयी। सम्पर्क, सूचना के प्रवाह के लिए पदनाम व रैंकिंग बनाई गयी। 

जो ब्रिटिश आर्मी की तर्ज पर थी, जिसमे गांधी के लिए "सार्जेंट मेजर" की पदवी तय हुई।  
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कोई 300 से अधिक भारतीय इसमे जुड़े। अन्य लोकल मिलाकर करीब 1000-1200 लोगो की यह विंग तैयार हुई।

जो लोग मोर्चो पर जाते। फ्रंटलाइन से घायलों को उठाकर मीलों चलते। फिर छकड़ा गाड़ी में डालते। अस्पताल या निकटस्थ मिल्ट्री कैम्प तक ले जाते। 

उनकी कोशिश से सैकड़ो जाने बची। 
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स्पियन कॉप नाम की जगह पर भयंकर लड़ाई हुई। गोली, बम और व्यापक कत्लेआम के बीच, हजार से ऊपर घायलों को उठाकर, इस एम्बुलेंस कोर्प्स ने बचाया। 

इस प्रयास में शामिल रहे 37 लोगों को क्वीन का साउथ अफ्रीका सर्विस मेडल दिया। 

इसमे गांधी भी एक थे। 
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1906 में वहां जुलु जनजाति के द्वारा विद्रोह हुआ। फिर लोग मर कट रहे थे। 

गांधी की एम्बुलेंस कोर्प्स ने फिर सक्रियता दिखाई, करीब 2 माह सेवा दी। इस बार भी कई जानें बची और नेटाल सरकार ने उन्हें एक और मेडल दिया। 
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इन सेवाओं से इतर, गांधी का एक्टिविज्म भी तेज हो रहा था। उनका समर्थन, सम्मान केवल इंडियन कम्युनिटी नहीं, बल्कि मलय, श्रीलंकन, अरब, जावा और सुमात्रा से आये लोगो के बीच भी बढ़ गया था। 

उनकी मांगें अब इंडियन कम्युनिटी के लिए ही सीमित नही थी। उनका फेम, स्वीकार्यता बढ़ी तो जेल यात्राएं, और ब्रिटिश की ब्रूटलिटी भी बढ़ती गयी। 

अब गांधी का रूख भी कड़ा, समझौते न करने वाला होता गया। 
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इस बीच गोखले साउथ अफ्रीका गए। वे बूढ़े हो चुके थे। कांग्रेस में दूसरे बड़े नेता, तिलक भी मांडले में बन्द थे। निस्तेज कांग्रेस को सम्हालने और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने का यह निमंत्रण, गांधी ने 3 साल बाद स्वीकारा। 

1914 दिसम्बर में उन्होंने साउथ अफ्रीका छोड़ा, तो वहां गवर्मेन्ट ने चैन की सांस ली। 
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और भारत की ब्रिटिश गवर्मेन्ट ने गांधी को खुश करने की कोशिश की। साउथ अफ्रीका में उनकी सेवाओ के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट टाइप एक पुरस्कार दिया- 

कैजर-ए-हिन्द। 

कैजर, सीजर का अपभ्रंश है। 
वही,जूलियस सीजर वाला सीजर..

मजे की बात, तब जर्मन राजा खुद को कैजर कहता था, उससे ब्रिटिश विश्वयुद्ध लड़ रहे थे। तो गांधी को कैजरे हिन्द कहने का मतलब था- भारत का राजा,

द इंडियन जूलियस सीजर। 
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पर जलियांवाला कांड ने सब बदल दिया। नाराज गांधी ने सारे पदक लौटा दिये, और असहयोग आंदोलन शुरू किया।।

वह असहयोग जीवनपर्यंत कायम रहा। 

भारत का राजा वे कभी नही बने। हां, सुभाषचंद्र बोस ने उन्हें राष्ट्रपिता का खिताब जरूर दे दिया। 
★★★★★
गांधी ने कभी कोई मिलिट्री सर्विस नही दी। 
कभी ब्रिटिश सेना में शामिल न हुए। 

एम्बुलेंस कोर्प्स, एक NGO थी। वर्दी, और सार्जेंट मेजर की पदवी उस प्रोटोकॉल का हिस्सा थे,जिसके तहत उन्हें लोगो की जान बचाने लिए, फ्रंटलाइन तक जाने की परमिशन मिली थी। 

आशा है, इस विषय पर सभी संशय समाप्त हो चुके होंगे।
🙏🙏🙏

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