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कल्पना करें, कि शानदार महल है। इसकी दीवारें झूठ की ईंटों से बनी हैं। खिड़कियों पर चापलूसी के पर्दे लगे हैं।
हर दरो-दीवार, और राजा के कंधों पर बैठे सैंकड़ो तोते, उसे झूठे किस्से सुना रहे हैं। इसलिए कि सच बोलने वालों को तो राजा ने पहले ही दीवारों में चुनवा डाला है।
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1943 के बाद हिटलर की यही हालत थी। अब तक पोलैंड, फ्रांस और नॉर्वे उसकी मुट्ठी में आ चुके थे। लेकिन यूरोप की ताकतें सम्हल चुकी थीं, कड़ी टक्कर दे रही थीं।
हिटलर की फौजें अब अजेय नहीं रह गई थीं। पर हार की खबर उसे पसंद न थी। चेतावनी देने वाले अफसर किनारे लगा दिए गए, और रोमेल जैसों को, तो जहर खिला दिया गया।
अब बचे हुए जनरल, सिर्फ सुखद झूठ सुनाने आते।
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रूस पर हमले के पहले गोअरिंग ने शान से दावा किया कि उसकी एयरफोर्स,कुछ हफ़्तों में रूस को हरा देगी। पहले हमले के बाद उसने खुशखबरी दी, कि सारी रूसी एयरफोर्स ध्वस्त हो गयी है।असलियत यह थी कि हज़ारों रूसी विमान लड़ने को बचे हुए थे।
जनरल हल्दर ने अक्टूबर 1941 में खबर दी कि मॉस्को किसी भी क्षण हाथ में आ जाएगा। सच यह कि ठंड और कीचड़ में फँसी जर्मन फौज, अभी मॉस्को पहुँची भी न थी।
और वो कभी पहुँच भी न सकी।
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स्टालिनग्राद के बाद रेडियो ने दावा किया कि पाउलस की सेना ने घेराबंदी तोड़ दी, जबकि वे कैद हो चुके थे। फील्ड मार्शल वॉन मान्स्टाइन ने कुर्स्क को "अटूट किला" बताया। लेकिन वो 12 दिन न टिक सका, और जर्मन दूसरे विश्वयुद्ध का सबसे बड़ा टैंक युद्ध हार गए।
आर्डेन्स अटैक में रुंडश्टेट ने जीत का दावा किया। तब उसका ईंधन खत्म हो चुका था।खड़े टैंकों पर बम बरस रहे थे। एंटवर्प मित्र राष्ट्रों के कब्ज़े में था।
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अंतिम दिनों में, गोएबेल्स और बोर्मन ने बर्लिन बचाने के लिए स्टाइनर के हमले की झूठी कहानी रची। जबकि स्टाइनर के पास हमला करने लायक सेना ही नहीं थी।
ये झूठ थोक में जनता को भी सुनाए जाते। जर्मन रेडियो जगह-जगह जीत की खबरें दे रहा था। बर्लिन पर टनों बम गिरते रहे, लेकिन रेडियो कहता रहा, कि पदुश्मन के विमान नष्ट हो गए और शहर सुरक्षित है।
हद तो यह कि जब हिटलर, बंकर में आत्महत्या की तैयारी कर रहा था, रेडियो पर फ़्यूरर की विजय उद्घोषणा बज रही थी।
आम जनता को तो रूसी सैनिक अपने दरवाजे पर देखकर यकीन ही नही हो रहा था।
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झूठ का लाक्षागृह, हमारे लिए भी बनाया जा चुका है। ट्रेलर आप, ऑपरेशन सिन्दूर में देख चुके।
भारत ने आतंकी ठिकानों पर सीमित हमले किए। लेकिन चैनलों ने इसे निर्णायक महायुद्ध बना दिया। दावा किया गया कि कराची पोर्ट नष्ट हो गया। लाहौर पर बमबारी हुई है, इस्लामाबाद पर कब्ज़े की तैयारी है।
पुरानी फुटेज को लाइव बताकर दिखाया गया।
टीवी पर AI जनरेटेड वीडियो चले। नकली सायरन बजे। मिसाइल और विस्फोटों के AI- ग्राफिक्स खूब चले।
दो JF-17 जेट गिराने का दावा चला, पुरानी क्रैश फुटेज के साथ। एक एंकर ने कहा कि हमने पाक का न्यूक्लियर बेस हिट किया। सोशल मीडिया पर AI वीडियो वायरल हुआ, कि पाक आर्मी चीफ़ आसिम मुनीर गिरफ्तार हो गए।
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सरकार ने इन्हें रोका नही, और न त्वरित खंडन किये। लेकिन जो फैक्ट-चेकर्स इन झूठों को उजागर कर रहे थे, उन्हें ट्रोल किया गया, गालियाँ दी गईं।
इस देश को 4 दिन, झूठ की ईंटों और फेक न्यूज़ के पर्दों से बने कैदखाने में बंद कर दिया गया।
यह एक बेहद सीमित, रणनीतिक ऑपरेशन की कहानी है।
जरा सोचिए, अगर कोई असली, पूर्ण युद्ध छिड़ गया, तो आपको असली खबरें मिल रही होंगी?
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और क्य असली खबर शीर्ष निर्णायकों तक पहुँच रही होगी? और अगर पहुँच भी रही होगी, तो क्या वह "बादलों में रेडार से छुपकर वार" करने की जिद पर अड़ा नहीं होगा?
स्टालिनग्राद में हिटलर को यकीन था कि विजय निश्चित है। तब सेना चारों तरफ़ से घिरी हुई थी। जनरल पाउलस ने आत्मसमर्पण की सलाह दी, तो हिटलर बोला- एक कदम पीछे नहीं, आख़िरी सैनिक तक लड़ो!
नतीजतन, उसके तीन लाख सैनिक हुक्मउदूली करके समर्पण कर गए। नाज़ी साम्राज्य की रीढ़ टूट गई।
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नॉर्मंडी हमले से, पहले हिटलर की छठी इंद्री कहती रही कि मुख्य हमला कैले में होगा। उसने सारे संसाधन वहीं फँसाए रखे। हमला नॉर्मंडी में हुआ। यह उसके अंत की शुरआत थी।
क्योकि जब सत्ता प्रतिष्ठानों में झूठ की मीनारें खड़ी हो जाती हैं, तब निर्णय भ्रम पर लिए जाते हैं। अंत की शुरुआत वहीं से होती है।
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यह भ्रम और प्रवंचना हमारी आर्थिक स्थिति, विदेश नीति, रक्षा नीति में साफ़ दिख रही है। लेकिन आलोचक दुश्मन, और झूठे आज वफादार बने बैठे हैं।
पर आप सच्चाई से मुँह मोड़ सकते हैं, इतिहास से नहीं। अफसोस बस इतना है, कि नेता के झूठ बोलने पर, कौआ सिर्फ़ नेता को नहीं,
एक समूचे देश, एक पूरी पीढ़ी को काटता है।