Blog :- कांग्रेस को खत्म हो जाना चाहिए... गांधी

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कांग्रेस को खत्म हो जाना चाहिए??

29 जनवरी 1948 की रात, देर तक वह इस पर लिखते रहे। वे कांग्रेस का भविष्य लिख रहे था। व्हाट्सप गप्पो के उलट, मोहनदास, कांग्रेस को मारने की बात नही कर रहे थे। 
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गांधी की कांग्रेस,हुकूमत ए बर्तानिया के खिलाफ पब्लिक को लामबंद करने का फोरम थी। एक खुला मंच, जिसमे कोई भी, भले कांग्रेसी हो या नही, जुड़कर आजादी की तहरीक का हिस्सा बन जाता। 

पर अब तो आजादी तो मिल गई थी। 

तो चुनौतियां अलहदा थी। 2 फरवरी 1948 को साप्ताहिक "हरिजन" में गांधी के दो आर्टिकल छपे। एक मे था- 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जो सबसे पुरानी संस्था है, जिसने अहिंसा से आजादी सहित क़ई लड़ाइयां जीती हैं, वह मरने नही दी जा सकती। वह तब ही मरेगी, जब यह देश मरेगा। 
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तो बापू चाहते क्या थे? 
कैसा बदलाव चाहते थे। 

दरअसल, 1937 और बाद के इलेक्शंस में काँग्रेस "पॉलीटिकल पार्टी" की तरह चुनाव लड़ी। अब कोई आंदोलन, रूप बदलकर चुनावी पार्टी हो जाता है, तो उसके चैलेंजेस बदल जाते है। 

यह चीज आप IAC के AAP में बदलने के दौरान हुए भटकाव से समझ सकते है।आंदोलन चलाना अलग है। गवर्नेस, एडमिनिस्ट्रेशन और पॉवर हैंडलिंग बिल्कुल अलग। 

सत्ता में आकर, नेताओ के चाल, चरित्र, चेहरे बिगड़ सकते हैं।ये गांधी जैसे विजनरी ने पहले ही देख लिया था। तो समाधान भी सोचा।
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हरिजन के उसी अंक में दूसरे लेख में वह सुझाव देते हैं कि कांग्रेस के जो लीडर, गवर्नेस की दिशा में जाना चाहे, बेशक पार्टियां बनायें। चुनाव लड़े, विधायक, सांसद, मंत्री बने। गवर्मेन्ट में सेवा दें। 

लेकिन उस सरकार पर जनता का नियंत्रण मजबूत होना चाहिए। वर्तमान कांग्रेस की जगह एक नया जनसँगठन हो, जो सरकार से अलहदा हो।
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जो संविधान के आदर्शों को, न्याय, समता, भाईचारा, आजादी बरकरार रखने के लिए..सरकार से इक्वल लेवल पर बारगेन करे। खुद जनसेवा- जनचेतना के कामो में निरंतर रत रहे। 

गांधी ने कांग्रेस के स्थान पर एक लोक सेवक संघ (LSS) के गठन की कल्पना की। उन्होंने लिखा- कांग्रेस को अपनी चवन्नी सदस्य्ता (तब सदस्यता शुल्क चार आने था) को अपने रजिस्टर से आगे बढ़कर, इसकी सदस्यता देश के तमाम वोटर, नागरिकों के बराबर करनी होगी। 

याने वह पूरे देश को, इस सरकार नियंत्रक प्रणाली का सदस्य बनाना चाहते थे। उनके दिमाग मे और क्या क्या था, वे शायद अगले अंकों में इस पर प्रकाश डालते। 

मगर, अगले दिन 30 जनवरी को गोडसे की गोलियों ने, विचारों का वह अजस्र प्रवाह रोक दिया।
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तो हम कभी नही जान पाएंगे, कि वे कांग्रेस की जगह पर एक नए लोक सेवक संघ, और एक नई राजनीतिक विंग के रिश्तों को किस तरह से ढालने की सोच रहे थे। 

शायद, एक मोटा-मोटा उदाहरण हम RSS और BJP के बीच देख सकते हैं। लेकिन यह भद्दा उदाहरण हुआ। 

तय है कि गांधी का लोक सेवक संघ, RSS की तरह का एक बंद, संदिग्ध, गुप्त उद्देश्यों वाला, मुट्ठी भर लोगो मे सिमटा, प्रतिगामी, फासिस्ट संगठन कतई न होता।
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इसे इम्पलीमेंट करने का मतलब था- कांग्रेस की पुरानी आइडेंटिटी मिटाकर, नये सिरे से रीऑर्गनाइज करना। नए सँगठन का मतलब था- प्रोविंसेज में फैले नेताओ को मुक्त करना

कुछ मिलकर नया दल बनाते, कुछ क्षेत्रीय दल। इनके कार्यक्रम, आपस में कॉन्फ्लिक्टिंग हो सकते थे। 

सम्विधान अभी बना नही था, याने देश मे शासन के स्वरूप पर भी, एकसमान विचार ड्राफ्ट नही था। गांधी के बाद दंगे, विभाजन, साम्प्रदायिक ज्वार के बीच, पटेल और नेहरू, कांग्रेस में ऐसा आमूलचूल बदलाव करने का रिस्क न ले सके।
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हालांकि कांग्रेस सेवा दल को उसी सोच पर बढाया गया। PM नेहरू ने उसे तरजीह दी। हाफ पैंट पहन उंसके कार्यक्रमो में शामिल हुए। मगर लोक सेवक संघ बनाकर देश के हर नागरिक को कांग्रेस से जोड़ने की बापू सलाह भुला दी गयी।

सेवादल महज फ्रंटल ऑर्गनाइजेशन बनकर रह गयी। सरकारें और सरकारी अफसर ही उसके कार्यक्रम के वाहक बन गए। तो जिस दिन सत्ता गयी, अफसर और नौकर नई विचारधारा के वाहक बन गए। 
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उसका कार्यकर्ता, जहां सत्ता बची है, इर्दगिर्द सत्ता की आशा में दुबक कर बैठा है। कुछ तो सत्ता जाते ही छोड़ गए।नतीज़तन कांग्रेस शवासन में पड़ी है।

हां, मरी नही है।
क्योकि हमने उसे फूँक कर जिंदा रखा है। 

बापू ने उस लेख में लिखा- कांग्रेस ये देश है, और देश के साथ ही खत्म होगी।।सारे गोडसे वादियों ने गांधी इस बात को गांठ बांधकर, यह देश शनै शनै खत्म करने का बीड़ा उठाया है। 

आखिर जब देश खत्म होगा, 
तभी तो जम्बूद्वीप कांग्रेसमुक्त होगा। 
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बहरहाल जो कांग्रेसी, बाजारू कंसल्टेंटो को पैसे देकर अक्सर पूछते है कि कांग्रेस को आगे क्या करना चाहिए..

उन्हें सूचना यही दीजिये, बापू कि लिखे आखरी दस्तावेज पढ़े जाएं। 

और बापू के कहे पर अमल किया जाए।

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