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प्रशांत किशोर के इंटरव्यूज, वीडियो और उनके राजनीतिक कर्मकांड देखना, मधुर संगीत सुनने सा अनुभव है। मानो कोई सिम्फनी, हर बीट, हर छंद, हर अंतरा बिल्कुल नपा तुला,
एकदम फिट!!
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उन्होंने राजनीति में कदम रखा, तो गांधी की तस्वीर पीछे लगी थी। उन्हें साफ समझ है, कि इस देश की इमेजिनेशन कैप्चर करनी है, तो गांधी की ही बात करनी होगी।
परफ़ेक्ट!!
फिर वे बिहार के गाँव गाँव पैदल घूमे, नेटवर्किंग की, लोगो से सीधे मिले। वे कहते हैं कि बिहार के 3000 गांव घूम चुके। वहां जात पांत, सेकुलर कम्युनल से युजुअल बहस से दूर, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, पलायन, औऱ बच्चो के भविष्य की चर्चा करते दिखे।
परफेक्ट!!
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लम्बा जीवन UN, और भारत के अंग्रेजी-दां एलीट क्लास के बीच गुजारने वाला शख्स, अब हर मंच पर हिंदी बोलता है। लहजा क्लासिकल बिहारी.. परफेक्ट!!
औरो के लिए चलाए चुनाव अभियानों की तरह वे यहां भी मैन, मैसेज और मैनेजमेंट की राह पर चल रहे हैं।
इस बार कल्ट पर्सनालिटी मोदी, नीतीश, ममता नही, वे खुद हैं। धन, डेटा का भरपूर प्रवाह है। प्रोफेशनल्स की सुसज्जित फौज 3 साल से लगी है - परफेक्ट
वे सारी सीटो पर लड़ेंगे। हर सीट पर कुछ तो वोट कबाड़ेंगे। ओवरऑल मत प्रतिशत सम्मानजनक दिखेगा। वे बिहार में लेजितमेट फोर्स के रूप में पहचाने जायेंगे। इतनी न्यूनतम उपलब्धि तो उन्होंने चुनाव पूर्व ही सुनिश्चित कर ली है।
परफेक्ट!!
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लेकिन परफेक्शन की पराकाष्ठा उनके अद्भुत मीडिया मैनेजमेंट और वाक्चातुर्य में दिखती है। सरल साफगोई से निर्भीक बात कहना उनकी खासियत है।
इतने टैलेंटेड कि हर इंटरव्यू, हर सवाल का अपने लिए निपुणता से इस्तेमाल कर जाते है। कोई पत्रकार उन्हें घेर नही पाता, उल्टे यूज हो जाता है।
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और मिस्ट्री भी यहीं है।
हिंदुस्तानी मीडिया सिर्फ उसे दिखा सकता है, जिसे दिखाने की उसे इजाजत हो। पीके को मीडिया का जितना कवरेज, और स्पेस वो दे रहा है, वह भारत के नेता विपक्ष, या मेनस्ट्रीम दलों को नसीब नही।
दूसरी मिस्ट्री, फ़ंडिंग है। मेरा सवाल ये नही की वे पैसा कहां से ला रहे हैं। इसका जवाब वे कई कई मंचों पर दे चुके हैं। एकदम परफेक्ट ईमानदार जवाब..
मेरा अचंभा तो है कि ED, CBI और तमाम एजेंसियां, उनके धन प्रवाह को रोकने की कोशिश क्यो नही कर करती। आप रात को कांग्रेस को 11 करोड़ देकर देखिए।
सुबह की चाय, ED का अफसर, आपके बैडरूम में न पिये तो कहना।
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इट इज सो अनलाइक मोदीराज।
क्या अफसरों को क्या PK के फाइनेंसरों का पता नही चल रहा? भला मोदी जी सह कैसे रहे हैं? PK तो गाहे बगाहे नरेंद्र मोदी पर भी हमले करते रहे हैं।
जाने कौन सा कवच, इंद्रदेव ने दिया है।
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PK केजरीवाल के बाद, "गमले में उगाए विपक्ष" की दूसरी क़िस्त है।
ज्यादा पॉलिश्ड हैं। B टीम का इल्जाम लगने पर, उन्होंने बिहार भाजपा के नेताओं पर संगीन इल्जाम लगाये, खूब सुर्खी बटोरी। इलजाम को एक हद तक हल्का कर गए।
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दूसरी तरफ, यूँ तो पीके को अपना रास्ता बनाते, आगे बढ़ते देखना हसीन है। वे प्रतिभावान और महत्वाकांक्षी हैं।
देश मे ऐसे हजारों लड़के होंगे। उन सबके पास रास्ता क्या है? परम्परागत राजनीतिक दलों में चापलूसी, गुटवाजी, वंशवाद और सामंतशाही भरी है।
कांग्रेस में किसी बड़े नेता का संरक्षण चाहिए, भाजपा में RSS के मूर्खो की लम्बी गुलामी जरूरी है। दूसरे दलों का हाल अलग नही।
इस बन्द दरवाजे को केजरीवाल ने लात मारकर खोला, तो पीके युक्ति से खोल रहे हैं।
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लेकिन फॉसिस्ट राज में, निशंक आगे बढ़ने के लिए आपको सरकार का एजेंट भी बनना ही पड़ेगा। कोई चारा नही।
हालांकि महत्वाकांक्षी व्यक्ति देर तक किसी की B,C,D टीम नही होता। फिर पीके तो एक एक करके, सबके साथ रह चुके हैं। यही सम्पर्क उनकी कमाई है।
इसलिए अवसर मिलते ही वे मालिक को ठेंगा दिखा देंगे, लँगड़ी मार देंगे। इस आशा में, और राजनीति की डगमग डगर पर उनके अविचल बढ़ने का माद्दा देख, आशीष देने का मन होता है।
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पर ठहर जाता हूँ।
टैलेंट, हिम्मत, वाकचातुर्य, और मैनेजमेंट आकर्षक गुण हैं। ऐसा पर्सनालिटी कल्ट नेता के लिए तो लाभदायक होता है। पर इसका दुरुपयोग लोकतन्त्र के विरुद्ध होते, ऑलरेडी देख रहे हैं।
फिर सड़के, स्कूल, हस्पताल, सड़कें तो कम ज्यादा सब बनायेंगे। आप समाज कैसा बनाना चाहते है? ये सवाल हर पोलिटिकल एस्पिरेन्ट से पूछा जाना चाहिए।
तब जिससे सही, साफ उत्तर न मिले, वह कितना ही परफ़ेक्ट क्यो न हो, मैं शंकित रहूँगा।
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ऐसा व्यक्तित्व एक परफेक्ट आर्टवर्क है। पर उसमे ईश्वर नही। ऐसी मूरते, ड्राइंग रूम में सजाई जा सकती है।
तारीफ की जा सकती है। पर मन्दिर के गर्भगृह में नही रखी जाती। पीके, इज दैट..