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जर्मनी में वह दौर था, जब हिटलर की लोकप्रियता ठाठें मारती थी। हर घर, हिटलर का मंदिर था।
राष्ट्रवाद के उत्सव के इस दौर में आम घरेलू जीवन पूरी तरह नाजी विचारधारा से रंग गया।
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राजनीति घरों की दीवारों तक उतर आई थी।
हर घर में स्वस्तिक झंडे लगाए जाते थे। सुबह उठते ही बच्चे हिटलर यूथ या बालिका लीग में शामिल होकर हेल हिटलर का नारा लगाते। माताएँ घर सजातीं, तो दीवारों पर हिटलर का बड़ा पोस्टर होता। मेज पर नाजी प्रतीक वाली मेजपोश होती।
रेडियो के मधुर संगीत के बीच, गोएबल्स के प्रचार प्रसारण चलाता। परिवार एकत्र होकर हिटलर की प्रशंसा में गीत गाते। बच्चे स्कूल से हिटलर की तारीफ वाली किताबें लेकर आते। रसोई में माँ मोहल्ले के नाजी दल की मीटिंग की तैयारी करती। जन्मदिन या त्योहारों पर हिटलर को समर्पित कार्ड बाँटे जाते। हिटलर जयंती को राष्ट्रीय अवकाश होता।
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प्रचार फिल्में जैसे ट्रायम्फ ऑफ द विल ने उसे हीरो बनाया।
1936 के बर्लिन ओलंपिक के दौरान यह भाव चरम पर थे। हिटलर को जर्मनी का उद्धारक माना जाता। बच्चे खिलौनों की जगह नाजी यूनिफॉर्म पहनते। नाजीवाद दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया था। सरकार हर माध्यम से इस प्रक्रिया को हवा दे रही थी।
नाजी दल का उदय हुआ, तो वह आम राजनीतिक दल थी। उसे कभी बहुमत नहीं मिला। हिटलर अल्पमत की गठबंधन सरकार में चांसलर बना। और फिर पूरा जर्मनी, उसके पर्सनालिटी कल्ट में बदल गया।
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फिल्में, पोस्टर और अखबार उसे देवतास्वरूप दिखाते। घरों में मीन काम्फ की प्रतियाँ रखी जातीं।
पार्टी सदस्यता अनिवार्य-सी हो गई थी। 1939 तक वह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा कर सकती थी। उसके 50 लाख से अधिक सदस्य थे।
घरेलू उत्सवों में नाजी थीम होती। क्रिसमस पर स्वस्तिक सजे पेड़, ईस्टर पर हिटलर की तस्वीरें लगती। बच्चे हिटलर यूथ कैंप या कहें, शाखा में जाते, जहाँ राष्ट्रवाद सिखाया जाता। माताएँ मदर क्रॉस पातीं यदि वे अधिक बच्चे पैदा करतीं।
पिता एसएस में शामिल होकर घर लौटते तो परिवार गर्व करता। यह समर्थन स्वैच्छिक भी था, लेकिन दबाव और प्रचार का मिश्रण भी था। नफरत ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई। लोगों ने बढ़-चढ़कर यहूदियों के बहिष्कार में भाग लिया, पड़ोसियों को रिपोर्ट किया।
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कुछ उसके कामों का असर भी था।
1933 में उसके सत्ता में आने के बाद बेरोजगारी 60 लाख से घटकर 1938 तक लगभग शून्य हो गई थी। ऑटोमोबाइल, हथियार कारखाने और सार्वजनिक निर्माण में जमकर रोजगार मिला। आम जीव समृद्ध हुआ।
महिलाएँ उसे पिता जैसा मानतीं। राइनलैंड पर कब्जा, ऑस्ट्रिया विलय ने जर्मन गर्व को हवा दी। राष्ट्र गौरव बढ़ाया। सर्वेक्षणों में, हालाँकि वे नियंत्रित थे, उसे 99 प्रतिशत समर्थन दिखता। लोकप्रियता इतनी कि विरोधी गायब हो गए, या करवा दिए गए।
हिटलर ही जर्मनी था, और जर्मनी ही हिटलर।
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नाजी रैलियाँ विशाल उत्सव थीं। न्यूरेम्बर्ग की रैली में 5 लाख से अधिक लोग इकट्ठे होते। सुबह से लाइनें लगतीं, ट्रेनें, बसें भरकर लोग आते। टिकट नहीं लगता था। हिटलर का भाषण सुनने को वे घंटों इंतजार करते।
बच्चे हिटलर यूथ परेड में, महिलाएँ फूल बिखेरतीं। 1936 रैली में तो 100 किमी लंबी लाइन लगी। लोग रात भर जागते, नारे लगाते कृ यह सामूहिक उन्माद था। युद्ध की शुरुआत में पोलैंड आक्रमण के दौरान, उत्साह चरम पर पहुँच गया। लोग रेडियो पर सुनकर नाचते।
फ्रांस विजय के बाद घरों में विजय उत्सव होता। बच्चे सैनिक बनने को उत्सुक थे। हर घर से एक दो व्यक्ति हिटलर के लिए वर्दी पहन, सीमा पर जाने को उतारू था।
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1941 में सोवियत आक्रमण के बाद से मोड़ आया।
1943 स्टालिनग्राद हार से दरारें पड़ीं।
बमबारी से शहर तबाह होने लगे। हैम्बर्ग, ड्रेसडेन में लाखों मरे। घरों में भूख का आलम था। अब लोग फुसफुसाते- यह पागलपन है।
लेकिन वक्त की चक्की महीन पीसती है। जर्मनों के नशे का पूरा इलाज होना था। 1944 तक थर्ड राइख तबाह हो चुका था। पूरा देश खंडहर में बदल चुका था। औरतें रोटी के बदले अस्मत का सौदा कर रही थीं।
सड़कों पर विदेशी बूट बज रहे थे। रूस में नाजियों ने इतने अत्याचार किए थे, कि वे प्रार्थना कर रहे थे, कि उन्हें अमेरिकी पहले कब्जा कर लें, रूसी नहीं।
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ईश्वर ने न सुनी। इसके बाद बर्लिन में हत्या, बलात्कार और लूट के जो गंदे खेल चले, इतिहास उन पर मौन रखता है। जर्मन भी बात नहीं करना चाहते।
30 अप्रैल 1945 को हिटलर उन्हें बर्बाद, अधर में छोड़कर मर गया।
बर्बाद जर्मनी ने 7 मई निशर्त समर्पण किया। न्यूरेम्बर्ग ट्रायल्स में तमाम बड़े नाजी नेता फाँसी चढ़े।
जो घर हिटलर का उत्सव मनाते थे, अब खंडहर थे। 60 लाख यहूदी मारे गए, 50 लाख जर्मन। राष्ट्रवाद का सपना होलोकॉस्ट और विनाश में बदल गया।
लोग पछता रहे थे, लेकिन देर हो चुकी थी। इस नाजीज्म के उत्सव का अंत युद्ध, मृत्यु और पतन और फिर देश के दो हिस्सों में विभाजन से हुआ।
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बारह साल पहले बंदनवार सजाती इस महिला ने नहीं सोचा होगा, कि वह मौत और बदकिस्मती का जश्न मना रही है।
मौत का बंदनवार सजा रही है।