Prithvi Shaw का घर और हम!
एक आम हिंदुस्तानी की तरह, रात को सोने से पहले मैं यूट्यूब पर टाइम वेस्ट कर रहा था, तभी सामने Prithvi Shaw के Home Tour का वीडियो आ गया। दूसरों के घरों में तांक-झांक करने की पुरानी आदत के चलते मैंने बिना एक मिनट गंवाए वीडियो प्ले कर दिया। वैसे भी गरीब लोगों को ये जानने का बड़ा शौक होता है कि बड़े लोगों के घर अंदर से दिखते कैसे हैं। ऐसा नहीं है कि उनके घर देखकर हमें कोई प्रेरणा लेनी है, क्योंकि प्रेरणा लेने वाले वैसे भी यूट्यूब पर होम टूर के वीडियो नहीं देखते। वो खुद किसी टूर पर निकले होते हैं। बस ऐसे ही, out of curiosity, मैंने सोचा, देखें तो सही भाई ने क्या खर्चा किया है।
एक मराठी यूट्यूबर Prithvi के घर का ये होम टूर करवा रहा था। हर जगह लग्ज़री और तड़क-भड़क साफ दिख रही थी। Prithvi ने बताया, "मैं शौकीन आदमी हूं, तो घर को उसी तरह से बनाया है।" कोई हर्ज़ नहीं... हर किसी को ये शौक होता है कि उसका घर उसकी पर्सनैलिटी की रिफ्लेक्शन हो। मगर जैसे-जैसे वीडियो आगे बढ़ा, मुझे ये बात अजीब लगने लगी कि Prithvi ने अपने घर का एक-एक कोना दिखा दिया। आम तौर पर बड़े लोग अपने घर का बेडरूम इस तरह के वीडियो में नहीं दिखाते। लेकिन Prithvi ने अपना बेडरूम दिखाया। बेडरूम में अपने महंगे जूतों के लिए बनाई ओपन शेल्फ दिखाई। दूसरे कमरे में लगा अपना 100 इंच का टीवी दिखाया। अपना गेमिंग रूम दिखाया। अपना पैडल पूल दिखाया। ये सब दिखाते हुए वो बार-बार ये भी बता रहे थे कि मुझे अच्छा पहनने का, अच्छी चीज़ों का बड़ा शौक है। और ये सब बताते हुए उनकी बातों में एक तसल्ली (contentment) दिखाई दे रही थी।
ये वीडियो चैनल पर तीन दिन पहले डाला गया था। मतलब ठीक उसी दिन, जब आईपीएल मेगा ऑक्शन का आखिरी दिन था। जिस दिन Prithvi Shaw को आईपीएल की 10 टीमों में से किसी ने भी 75 लाख रुपए के दाम पर नहीं खरीदा था। मतलब, जिस आईपीएल ऑक्शन में 13 साल के वैभव सूर्यवंशी को राजस्थान रॉयल्स ने 1 करोड़ दस लाख में खरीद लिया, उसी ऑक्शन में उस खिलाड़ी का एक भी खरीददार नहीं था, जिसे एक वक्त भारत का अगला सचिन तेंदुलकर कहा जाता था। जिसके लिए रवि शास्त्री ने एक वक्त कहा था कि उन्हें Prithvi में सचिन, लारा और सहवाग तीनों एक साथ दिखते हैं। मतलब, जो खिलाड़ी 19 साल की उम्र में अपनी पहली ही टेस्ट सीरीज़ में मैन ऑफ द सीरीज़ बना था, वो 25 का होते-होते कल की बात हो गया।
आज ही के Times of India की रिपोर्ट में दिल्ली डेयरडेविल्स (अब दिल्ली कैपिटल्स) के असिस्टेंट कोच रहे प्रवीण आमरे के हवाले से लिखा है कि उनके कहने पर 18 साल के पृथ्वी शाह को दिल्ली कैपिटल्स से जोड़ा गया था। 18 साल की उम्र में उन्हें 1 करोड़ रुपए में खरीदा गया। वो 5-6 साल तक दिल्ली कैपिटल्स के साथ रहे और इस दौरान उन्होंने बड़े आराम से 35 से 40 करोड़ रुपए कमा लिए। मतलब, 23 साल की उम्र तक पृथ्वी ने इतना पैसा कमा लिया था, जितना बड़े-बड़े प्रोफेशनल भी नहीं कमा पाते।आमरे ने बताया कि उन्होंने अपने पहले ही मैच केकेआर के खिलाफ 99 रन भी बनाए थे। इसके बाद उनका फॉर्म लगातार गिरता गया। मैच से एक दिन पहले टीम मीटिंग में उनको अगला मैच न खिलाने की बात होती थी, मगर उनकी potential को देखते हुए हर बार आखिरी मौके पर उनको टीम में ले लिया जाता था। मगर 2024 का सीज़न ख़त्म होते-होते टीम मैनेजमेंट का हौसला जवाब दे गया। पृथ्वी के साथ अनुशासन का भारी मसला था। उनमें फेल होने के बाद दोबारा परफॉर्म करने की भूख दिखाई नहीं दी। और आखिरकार टीम मैनेजमेंट ने उन्हें इस बार न लेने का फैसला किया। पृथ्वी के इसी रवैये और खराब फॉर्म की वजह से वो इस बार मुंबई की रणजी टीम से भी बाहर हो गए। तब भी यही शिकायत आई कि उनके साथ अनुशासन का खास मसला है और उनका मन पार्टीबाज़ी में ज़्यादा लगता है।
साइकोलॉजी में एक बहुत important concept है जिसका नाम Delayed Gratification… जिसका साधारण शब्दों में अर्थ होता है कि अपने long-term लक्ष्यों को पाने के लिए immediate pleasure (तात्कालिक सुख) से कैसे बचें। क्योंकि अगर आपने छोटे-मोटे pleasure से खुद को बहला लिया या खुश होने दिया, तो आपका मन वहीं अटक जाएगा। आपका दिमाग आपको कहेगा कि भाई, जब यहीं मज़ा आ रहा है, तो खुद को और परेशान करने की ज़रूरत क्या है।ये विचार कहता है कि अगर आप तात्कालिक सुख के चक्कर में पड़ गए, तो आप कभी long-term goal हासिल करने के लिए अनुशासन और कड़ी मेहनत करने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाएंगे।पृथ्वी शाह ने अपने home tour वीडियो में जब अपने महंगे जूते, शानदार घर, बड़े टीवी को दिखाते वक्त बड़े उतावले दिख रहे थे, तो यही लगा कि ये मामला सिर्फ अपना घर बनाने की खुशी का नहीं है, बल्कि इस छोटी खुशी को ही बहुत बड़ी खुशी मानकर संतुष्ट हो जाने का है।महज़ 6-7 साल पहले तक आप एक लोअर मिडिल क्लास इंसान का जीवन जी रहे थे और आज आपके पास दुनिया की हर शानो-शौकत है। महंगी गाड़ी है, पार्टियां हैं, लड़कियां हैं...वो सब कुछ है जो पैसे से खरीदा जा सकता है। एक तरफ करियर को अगले लेवल पर ले जाने के लिए आपको और मेहनत करनी है, दूसरी ओर अब तक की मेहनत से जो आपको मिला है, उसे भोगते हुए करियर को आगे ले जाना था। मगर आप उस भोगने में इतने खो गए, उससे ही इतने मोहित हो गए कि आप भूल ही गए कि इन चीज़ों से मिला सुख आपका निजी सुख है। और क्रिएटर (मैं इस insta influencer की बात नहीं कर रहा ) का निजी सुख दुनिया के लिए कोई मायने नहीं रखता। क्रिएटर का मन न भी करे, तब भी उसे ये सोचकर मेहनत करनी पड़ती है कि ईश्वर ने उसे जो प्रतिभा दी है, उसके साथ न्याय करना उसका फर्ज़ है। इसलिए उसे किसी हाल में रुकना नहीं है और तब तक काम करना है जब तक उसमें आखिरी सांस है। भारत में अमिताभ बच्चन इसका बेहतरीन उदाहरण हैं और हॉलीवुड में clint eastwood।
आपको इतिहास भी इस बात के लिए याद नहीं रखेगा कि आपने कौन-सी महंगी गाड़ी चलाई, जवानी में कितने लोगों से संबंध बनाए, या कितने महंगे काउच पर बैठकर टीवी देखा। दुनिया को सिर्फ इस बात से मतलब होता है कि आपने ऐसा क्या किया जिससे उनका जीवन समृद्ध हो पाया। इस दुनिया में किसी भी इंसान को मिलने वाला सम्मान और पैसा इस बात पर निर्भर करता है कि वो लोगों की ज़िंदगी में क्या value addition कर पा रहा है। आप क्रिकेटर हैं, लेकिन जब तक आपने खेल के ज़रिए लोगों को आनंदित नहीं किया, तब तक आप दुनिया के लिए कोई मायने नहीं रखते।सच तो यह है कि टैलेंट के बावजूद बहुत से लोग ज़िंदगी में इसलिए आगे नहीं बढ़ पाते, क्योंकि उनमें अपने टैलेंट को पचाने का हाज़मा नहीं होता। वे थोड़े से पैसे और थोड़ी सी शोहरत से ही चमत्कृत हो जाते हैं।
ये स्थिति वैसी ही है जैसे बाज़ार में निवेश करते समय आप कितना पैसा कमाएंगे, ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप उसमें कितने लंबे समय तक invested रहते हैं। अगर आपने बहुत थोड़ा पैसा कमाने पर ही कोई स्टॉक बेच दिया, तो आप कभी वेल्थ क्रिएशन नहीं कर पाएंगे। अमीर बनने के लिए आपको लगातार और लंबे समय तक निवेश करना पड़ता है। यहीं पर delayed gratification का महत्व आता है। यही बात करियर में कुछ बड़ा हासिल करने को लेकर भी लागू होती है। अगर आप थोड़ी सी मेहनत से मिली सफलता को भोगने में लग गए और मेहनत रोक दी, तो फिर आपकी तरक्की भी वहीं रुक जाएगी।
ऐसा नहीं है कि पृथ्वी शाह इस समस्या का शिकार होने वाले पहले इंसान हैं। वे एक बेहद प्रतिभाशाली बल्लेबाज़ थे (या हैं?), जिन्होंने अपने टैलेंट के साथ न्याय नहीं किया। इसलिए हम उनका ज़िक्र कर रहे हैं। मगर सच तो यह है कि हममें से ज़्यादातर लोग जल्दी संतुष्ट हो जाने के इस भाव की वजह से वह नहीं बन पाते, जो बड़े आराम से बन सकते थे।जिस शख्स ने देखा कि उसके पिता पूरी ज़िंदगी 15 हज़ार रुपए महीना नहीं कमा पाए, जिसने बड़े टीवी या अच्छे फ्रिज का सपना देखा, वह शख्स जब दो साल की नौकरी के बाद 50 हज़ार रुपए कमाने लगता है, तो उसी 50 हज़ार से चमत्कृत हो जाता है। फिर वह उन सब चीज़ों से अपना घर भरने लगता है, जिनके लिए वह तरसा है। बाद में उन्हीं चीज़ों की ईएमआई उसे वह नौकरी छोड़ने नहीं देती। हर बार तनख्वाह बढ़ने पर वह अपने सोशल स्टेटस को बढ़ाता जाता है। हर बार नई चीज़ घर लाने पर लगता है कि वह तरक्की कर रहा है। मगर उस चीज़ से मिलने वाली उत्तेजना उस पर लगा प्लास्टिक कवर हटाने से पहले ही खत्म हो जाती है।फिर एक वक्त आता है, जब न तो नौकरी छोड़कर उस व्यवस्था से निकलने की हिम्मत होती है और न ही यह पता होता है कि नौकरी छोड़ने के बाद करना क्या है। जो नहीं करना, वो तो साफ होता है, मगर जो करना है, वह स्पष्ट नहीं हो पाता। और अगर यह भी साफ हो जाए कि क्या करना है, तो इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाते कि एक नई शुरुआत कर सकें। फिर जब भी ये मुश्किल सवाल सामने आता है, तो हम खुद को किसी नए प्लेज़र में उलझाकर इस फैसले को टाल देते हैं। इसी तरह गोल-गोल घूमते हुए जीवन बीत जाता है और एक खालीपन बना रहता है।
उस खालीपन को कुछ लोग दारू पाटी करके दूर करते हैं, सोसाइटी की आरडब्ल्यूए में नेतागिरी करके करते हैं या फिर गैरज़रूरी बातों का मुददा बनाकर अपनों से रिश्ता बिगाडने में । मगर कभी ये समझ नहीं पाते कि वो खालीपन है क्या…किसी ने बड़ी अच्छी बात कही है: गुलाब को ज़िंदगी में क्या बनना है, इसके लिए उसे किसी करियर काउंसलर के पास नहीं जाना पड़ता, न ही किसी मोटिवेशनल स्पीकर को सुनना पड़ता है…गुलाब, गुलाब बनता है क्योंकि उसके अंदर गुलाब का बीज होता है…पर इंसानों के साथ दिक्कत ये है कि हमारे अंदर कौन सा गुलाब छिपा है…कौनसा बीज छिपा है…ये हमें खुद ढूंढना पड़ता है!
पर होता ये है कि कुछ लोग बेचारे जन्म से ज़रूरतें पूरी करने के सवाल में इतना उलझे होते हैं कि कभी खुद तक पहुंच नहीं पाते। जो किसी लायक होते हैं वो छोटे-मोटे pleasure seek करने में अपनी ज़िंदगी बिता देते हैं और कभी जीवन में higher purpose नहीं ढूंढ पाते हैं...ये ख्याल ही मन में नहीं आता कि मैं कुछ और भी हो सकता था और एक बेहोशी में जीवन बीत जाता है। Woody Allen ने अपनी फिल्म Annie Hall में कहा था: "जीवन रहस्य, अकेलेपन और दुखों से भरा हुआ है। और इससे पहले कि हम इसे समझ पाएं, ये खत्म हो जाता है।"