कई परगना की देवी रानी माई, लोक तत्वों के गाथा समेटे सूतियापाट



राजधानी रायपुर से 140 किमी दूर कांकेर जिले के चारामा तहसील डोंगरी ग्राम पंचायत का आश्रितग्राम है। ग्राम पंचायत डोंगरी लोक देवी रानी माई
के नाम से है, रानी माई आसपास के सात-आठ गांव की प्रमुख देवी हैं जो टिकरापारा से लगभग 3 किमी की दूरी पर जंगल में डोंगरी की गुफा में
विराजित हैं। डोंगरी से लगभग 50 फुट ऊंची एकाश्म चट्टान है और इस चट्टान पर एक बड़ी चट्टान छत की तरह प्राकृतिक रूप से रखी हुई है।
ना यहां खुले में रानी माई का स्थान है, इनकी कोई प्रतिमा नहीं हैं।
 
 यहां सिर्फ आभासी रूप में विराजमान होकर बैगा के माध्यम से अपना पर्चा
के देती हैं। रानी माई के स्थान पर उनकी सेवा के लिए एक घोड़ा रखा गया है। रानी माई आसपास के रानी डोंगरी, टिकरापारा, कुरूभाट, कोटेला, टोके
पाट आदि गांव की आराध्या हैं। यहां चढ़ाया गया प्रसाद घर नहीं लाया जाता, वहीं खाया जाता है। मान्यता है कि रानी माई का आगमन बस्तर से हुआ है। माता महानदी के साथ आई और साथ मेंबावन कोरी देवता भी आए। माता के साथ उनकी पति देशर्मा, बेटा कुंवर पाट, बहू बिजली कैना, जोगड़ा बाबा, गढ़ हिंगलाज देवी और राजा देव भी आए। बताया जाता है कि देवी स्थल पर एक बूढ़ा सिंह भी रहता था जो देवी के स्थान के इर्द गिर्द हमंडराता रहता था, जब कोई पूजा करने आता था तब वह गुफा में चला जाता था। अनेक मान्यताओं के कारण यहां वर्ष में एक बार मेला-मड़ई भी भरता है।


गंडई क्षेत्र में सुतियापाट मैकल पर्वत श्रेणी की सबसे ऊंची पहाड़ी है, इसलिए इसे राजा भी कहा जाता है। इनकी प्राकृतिक संरचना के आधार पर लोक ने इनका नामकरण सुतनीनपाट, चंदेला, कुहकी मुड़फोरवा
और सुवा पड़की दिया है। इस अंचल की अपनी पृथक-पृथक मान्यताएं हैं। लोक द्वारा पूजा विधान के लिए पाट-पीढ़ा व गांवों में स्थान विशेष पर चूरीपाट चढ़ाने की प्रथा है, उसे लोक ने पाट शब्द देकर अभिहित
किया और श्रद्धा का केन्द्र माना।


वर्धा जिला मुख्यालय से लगभग 45 किमी दूरी पर सुतियापाट स्थित है। सहसपुर लोहार व सिल्हाटी से भी सुतियापाट जाने का मार्ग है। गंडई क्षेत्र में सुतियापाट मैकल पर्वत श्रेणी की सबसे ऊंची पहाड़ी है, इसलिए इसे
राजा भी कहा जाता है। इनकी प्राकृतिक संरचना के आधार पर लोक ने इनका नामकरण सुतनीनपाट, चंदेला, कुहकी मुड़फोरवा और सुवा पड़की दिया है।
इस अंचल की अपनी पृथक-पृथक मान्यताएं हैं। लोक द्वारा पूजा विधान के लिए पाट-पीढ़ा व गांवों में स्थान विशेष पर चूरीपाट चढ़ाने की प्रथा है, उसे लोक ने पाट
शब्द देकर अभिहित किया और श्रद्धा का केन्द्र माना। सुतियापाट नामकरण भी इसी आज भी निराकार रूप में इस पहाड़ी के आसपास विचरण करते हैं। सुतियापाट
का प्राकृतिक सौंदर्य असीम है। इस स्थान से प्रकृति के विहंगम दृश्य का अवलोकन किया जा सकता है। इस पहाड़ी की ऊंचाई लगभग 1500 फीट है
तथा ऊपर पहाड़ी तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। यहां पर्यटन से संबंधित सारी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। इस पहाड़ी में अनेक देवी-देवता और
जंगलों से युक्त होने के कारण वर्ष भर पर्यटक प्रकृति का आनंद लेने पहुंचते रहते हैं। आसपास के गांवों में ऐसी मान्यता है कि यहां मनौती करने से इच्छित
फल की प्राप्ति होती है।

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