कुछ दिन पहले मैनें जावेद अख्तर, बशीर बद्र और राहत इंदौरी का एक पोस्ट में नाम लिया। कई मितरो ने कहा, इसमें गुलजार का नाम क्यो नही है...
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गुलजार का लिखा पसन्द है मुझे।
पर उनमे एक अलग ही कठोर किस्म का रियलिज्म होता है। लिखना ही नही बोलना भी...
उनकी आवाज एक अलहदा हैवी नशा है।"तेरा बयान गालिब" अक्सर सुनते सुनते सो जाता हूँ।
उनके कलाम की बात की जाए, तो वैसा ही भारी है। जगजीत के साथ उनका फेमस एलबम मरासिम, इतना ग्लूमी है, कि शाम को लगा लो, तो लगता है घर मे कब्रिस्तान का मातम पसरा है।
आंखों से आंसुओ के मरासिम पुराने है
मेहमाँ ये घर मे आये तो, चुभता नही धुआं
सोचिए, तभी कालबेल बजे, और कोई मुलाकाती आया हुआ हो।
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"कोई बात चले" नाम से और एक एलबम है।
नजर उठाओ जरा तुम, तो कायनात चले
है इंतजार के आंखों से कोई बात चले..
ये शुरुआत होते ही अत्यंत रोमांटिक सुखानुभूति होती है। मुखड़े के बाद मोहब्बत की मर्सिडीज, एड़ लगाकर जगजीत की मखमली आवाज से बने चिकने एक्सप्रेसवे पर,150 की रफ्तार से फिसल रही है,
कि तभी!!!
किसी भिखारी का टूटा हुआ कटोरा है
गले मे डाले जिसे आसमां पे रात चले..
अब क्या ही कहें कालरा साहब। रोमांस की गाड़ी, इस भिखारी के कटोरे से, धाड़ से टकराकर चूर चूर हो जाती है
यही नही, अभी और सुनिए
तुम्हारी मर्जी बिना, वक्त भी अपाहिज है
न दिन खिसकता है आगे, न आगे रात चले.
ए भाई 🙄
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तो मुझे महान गुलजार की जहीन गुफ्तगू, अच्छी लगती है। लेकिन शायरी से ज्यादा फिल्मी गीत ही पसंद हैं।
आंधी फ़िल्म के तमाम गाने, और मासूम का "हुजूर इस कदर भी न इतरा के चलिए" रिपीट मॉड में दिन भर सुन सकते है। लेकिन गुलजार कहते ही मुझे एक लाइन याद आती है-
लब हिलें तो मोगरे के,
फूल खिलते है कहीं..
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इस पंक्ति में मोगरे का फूल होना, मुझे खुशबूदार अहसास देता है। बचपन के घर में लगी मोगरे के फूलों की क्यारी जेहन में घुमड़ती है।
ये फूल और दूसरे पौधे पापाजी ने लगवाए थे। पर इन क्यारीयो की देखभाल मैं करता था। मोगरे के छोटे,सफेद खुशबूदार फूल, गुच्छों में खिलते।
कई बार स्कूल जाते समय, सफेद शर्ट के पॉकेट में डाल लेता। दिन भर सूँघता रहता।
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तो जब गीत के मुखड़े से आगे, उसके अन्तरे भी समझने की उम्र आयी, तो ये गीत दिल को बड़ा अच्छा लगा।
लेकिन दिमाग परप्लेक्सड था। मेरा लॉजिकल मस्तिष्क यह सवाल पूछता - अरे भईया, भला किसी लड़की के होठ व्हाइट कलर के काहे होंगे।
हिले तो मोगरा काहे होगा भई..
गुलाब न होगा? होठ तो पिंक होते है न..
क्या ही अहमक शायर है।
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फिर एक दिन पीपल के नीचे बैठे हुए अचानक मुझे बुद्धत्व प्राप्त हुआ। ज्ञान उपजने के क्षण में मुझे समझ आया, कि लब हिलने का मतलब है कि नायिका बोलती या हंसती है।
तब कवि को होठो के पीछे छुपी, श्वेत कोलगेट दंतपंक्ति झलकती है। बस, यही वो मोगरे के फूल हैं।
जाहिर है, उसकी सांसों की ताज़गी एकदम मोगरा की खुशबू जैसी होगी। उस खुशबू का फैन तो मैं था ही।
तब से मेरा लॉजिकल दिमाग भी इस गीत को लेजेंड मानने पर फुल्ली एग्री हो गया। गीत इस तरह का है..
आप की आँखों में कुछ
महके हुए से राज़ है
आप से भी खूबसुरत
आपके अंदाज़ हैं
लब हिलें तो मोगरे के
फूल खिलते है कहीं
आप की आँखों में क्या
साहिल भी मिलते हैं कहीं
आप की खामोशियाँ भी
आप की आवाज़ हैं
आप की आँखों में कुछ ...
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गुलजार ने इस बरस 90 पूरा किया।
वे शतायु हों।
❤️