दहेज हत्या झेलती महिला अब ड्रम दिखाने लगीं...!
आज सुबह- सुबह की खबर है कि इंदौर से हनीमून पर उत्तर-पूर्व के शिलांग गए हुए जिस राजा रघुवंशी की लाश मिली थी, अब उसकी पखवाड़ा भर पुरानी दुल्हन सोनम को पुलिस ने पति का कत्ल करवाने के जुर्म में गिरफ्तार किया है। इस जोड़े के लापता होने को लेकर मध्यप्रदेश में हफ्ते भर से खलबली मची हुई थी। सोनम ने जिन तीन लोगों को कत्ल की सुपारी दी थी, वे तीनों भी इंदौर के ही रहने वाले हैं, और मेघालय पुलिस को इंदौर पुलिस से ही पूरा सुराग मिला था।
हिंसा की घटनाओं पर अधिक लिखना मुझे ठीक नहीं लगता, क्योंकि इससे एक नकारात्मकता फैलती है, लेकिन इन दिनों समाज में जो चल रहा है, उसको अनदेखा करना भी कोई हल नहीं है। यह घटना अकेली नहीं है, और अभी दो ही दिन पहले छत्तीसगढ़ के कोरबा में पति को छोड़कर पत्नी अपने प्रेमी के साथ चली गई, और पति ने रिपोर्ट लिखाई है कि जाते-जाते पत्नी उसे नीले ड्रम में पैक कर देने की धमकी दे गई है। अब नीला ड्रम ऐसा लगता है कि इस देश में बहुत सी महिलाओं के खिलाफ लिखाई जाने वाली पुलिस रिपोर्ट में इस्तेमाल हो रहा है, और इसे मुजरिम मिजाज की महिलाओं के सशक्तिकरण का एक प्रतीक बना दिया गया है।
महिलाओं का सशक्तिकरण भारतीय समाज में एक विस्फोट की तरह हुआ है। कुछ तो देश में लड़कियों के पढ़ने का माहौल बढ़ा, कुछ वे पढ़ने के बाद या पढ़ाई के बिना कामकाज में आने लगीं, और बढ़ते शहरीकरण के साथ-साथ लड़कियों और महिलाओं के आसमान का विस्तार होते चला गया। जो भारतीय समाज लड़कियों को आमतौर पर पिंजरे में रखता था, उस समाज में अब लड़कियां नीले गगन में दूर-दूर तक पंख पसारने लगीं। फिर मोबाइल और दुपहिए ने उनको जमीन पर भी दूर-दूर तक जाने, काम करने, हुनर सीखने, प्रतिभा चमकाने के अपार अवसर देना शुरू कर दिया। आज देश के भीतर और ओलंपिक तक किन्हीं भी खेल मुकाबलों में यह याद रखना मुश्किल पड़ता है कि पुरुष खिलाड़ियों को अधिक मैडल मिले हैं या महिला खिलाड़ियों को।
जब शहरीकरण की वजह से उच्च शिक्षा और तकनीकी दक्षता से महिला के अवसर बढ़ते चले गए, तो यह जाहिर है कि वह जिंदगी के हर पहलू में एक बराबरी तक पहुंचने लगी। यह बराबरी अब सोशल मीडिया और मोबाइल फोन की मेहरबानी से हर तरह के संबंधों तक भी पहुंचने लगी, और कल तक जो संबंध मर्दों का एकाधिकार माने जाते थे, उन्हीं के रहम-ओ-करम पर बनते और बिगड़ते थे, अब वे फैसले लड़कियां और महिलाएं भी लेने लगी हैं। अभी चौथाई सदी पहले तक भारतीय समाज में विवाहेत्तर संबंध बनाना मर्दों की मोनोपोली रहती थी, लेकिन महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता, और शहरीकरण से उन्हें मिली आजादी की वजह से अब वे भी ऐसे कई मामलों में सामने आ रही हैं, जिनमें पिछले प्रेमी या वर्तमान पति को खत्म करवाने तक का फैसला वे ले रही हैं।
मैं किसी भी तरह से महिलाओं की आत्मनिर्भरता को, इन गिनी-चुनी हिंसक घटनाओं की वजह से, मुजरिम करार देने का काम बिल्कुल नहीं कर रही हूं। लाखों महिलाओं की समाज में सकारात्मक आर्थिक निर्भरता के बाद कोई एक-दो महिलाओं के ऐसे काम आत्मनिर्भरता से जोड़कर देखना कई लोगों को जायज नहीं लगेगा, लेकिन सच तो यही है कि सदियों से इस पुरुष प्रधान समाज में जुल्म और नाइंसाफी झेलते चली आ रही महिलाएं अब कहीं-कहीं पर प्रतिकार करने लगी हैं। उनका प्रतिरोध ठीक उसी दर्जे का हिंसक होने लगा है जिस दर्जे की हिंसा उनके मुकाबले आज भी सौ गुना अधिक मर्दों के हाथों होती हैं। कामकाजी महिला पहले जिस शोषण को बर्दाश्त करना काम का हिस्सा मानने पर मजबूर थी, आज वह खुलकर उसका प्रतिरोध करने लगी है, और शोषण के सुबूत जुटाकर उसका भांडा भी फोड़ने लगी है। ।
लोगों को याद होगा अपने पर हुए सामूहिक बलात्कार के विरोध में फूलन डकैत बनी थी, और फिर उसकी प्रतिरोध और प्रतिशोध की हिंसा ने एक नया इतिहास लिखा था। इसलिए भारतीय समाज में दबी कुचली, अत्याचार की शिकार महिलाओं में अब अगर प्रतिरोध की एक ताकत आ रही है, उनमें एक हौसला पैदा हो रहा है, तो प्रतिरोध की ऐसी नौबत न आए, इसका ख्याल भी भारतीय पुरुषों को रखना पड़ेगा। जिन मामलों में कोई प्रेमिका या पत्नी कत्ल करने या करवाने जैसी सबसे भयानक हिंसा तक पहुंच जाती हैं, वहां यह सामाजिक विश्लेषण करने की भी जरूरत है कि क्या प्रेम में उस लड़की के साथ कोई ज्यादती हुई है, क्या प्रेमी द्वारा उसे यार-दोस्तों के सामने ‘पेश’ किया गया है? दूसरी तरफ शादीशुदा महिलाओं के बारे में भी यह सोचने की जरूरत है कि क्या वे किसी बेवफाई की शिकार होकर जवाबी बेवफाई पर उतरी हैं, जिसमें बात बढ़कर हिंसा तक पहुंची है? ऐसे बहुत से जटिल सामाजिक समीकरणों के देखने की जरूरत है जिनमें से हर किसी की चर्चा यहां संभव नहीं है।
फिर भी इस पुरुष प्रधान समाज को आज संभलकर बैठना चाहिए, और दीवार पर आईने के बगल में नीले ड्रम की एक फोटो टांगनी चाहिए और दोनों को देखते हुए यह आत्मविश्लेषण करना चाहिए कि क्या वे अपनी प्रेमिका या पत्नी की जिंदगी में रहने के लायक हैं, या फिर इस ड्रम में रहने लायक?
क्या सोचते हैं आप?
- तृप्ति सोनी